हेलो दोस्तों क्या आप भी काजू की खेती करना चाहते हैं। और आपको नहीं पता कि काजू की खेती कैसे किया जाता है। तो हम यहां आपको बताने वाले हैं कि काजू की खेती कैसे किया जाता है और काजू की खेती कहां पर होती है। इसके लिए आपको आज का हमारा इस आर्टिकल को शुरू से अंत तक पढ़ना होगा, ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके और आप काजू का खेती कर पाए अपने घर पर।
काजू एक प्रकार का पेड़ होता है। जिसके फल सूख जाने के बाद मेइंवे के रूप में उत्पादन होते हैं। काजू सूखे मेवे के लिए बहुत ही लोकप्रिय माना जाता है काजू का इस्तेमाल खाने में किया जाता है इसके साथ ही जिसे कई तरह की मिठाइयां को बनाने तथा उनमें मिलावट के लिए भी किया जाता है। इसमें काजू कतली की मिठाई को बनाने के लिए काजू को पीसकर उपयोग में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त काजू का इस्तेमाल मंदिरों को बनाने में भी किया जाता है इसलिए काजू की फसल को व्यापारिक तौर पर बड़े पैमानों पर उड़ाया जाता है तथा या निर्यात का एक भी बड़ा व्यापार है।
काजू में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं। काजू के पेड़ 14 से 15 मीटर तक लंबे होते हैं। इसके पेड़ फसल देने के लिए 3 वर्ष का समय लेते हैं। काजू के अलावा इसके छिलकों को भी प्रयोग में लाया जाता है। इसके छिलकों से पेट और लुब्रिकेंट्स को तैयार किया जाता है। वर्तमान समय में काजू की खेती करना किसान भाइयों के लिए बहुत ही लाभदायक साबित हो रहा है। यदि आप भी काजू की खेती करने का मन बना रहे हैं तो इस लेख को आपको काजू की खेती कैसे होती है। काजू की खेती कैसे कमाई के बारे में जानकारी दी जा रही है।
काजू की खेती कैसे करें?
काजू की खेती को सबसे पहले ब्राजील में किया गया था। यह उष्णकटिबंधीय स्थान पर इसके अच्छी पैदावार होती है। सामान्य तापमान वाली जगह पर इसकी खेती को करना अच्छा माना जाता है। काजू की खेती को समुद्र तल से 750 मीटर की ऊंचाई पर हो करना चाहिए। फलों की पैदावार के लिए इसकी फसल को नमी या सर्दी से बचाना होता है क्योंकि नमी और सर्दी की वजह से इसकी पैदावार में प्रभावित होती है या साफ शब्दों में क्या आया तो कमी होती है।
काजू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती में समुद्रीय तालियां लाल और लेटराइट मिट्टी को इसकी फसल के लिए अच्छा माना जाता है। इसी वजह से दक्षिण भारत में समुद्रीय तटीय इलाकों में इसकी अधिक पैदावार होती है इसके अतिरिक्त भी इसकी खेती को अच्छी देख-रेख के साथ कई तरह की मिट्टी में भी किया जा सकता है।
काजू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
काजू की खेती में उष्णकटिबंधीय जलवायु को सबसे अच्छा माना जाता है। तथा गर्म और आदर जलवायु जैसी जगह पर इसकी पैदावार काफी अच्छी होती है। काजू की फसल में अधिक बारिश की आवश्यकता होती है इसके पौधों को अच्छे से विकसित होने के लिए 600 से 4500 मिमी मीटर बारिश की आवश्यकता होती है। काजू की फसल में सामान्य से अधिक सर्विस था गर्मी होने पर पैदावार प्रभावित होती है, इसके अतिरिक्त सर्दियों में पढ़ने वाला पल भी इसके फसल के लिए नुकसान पहुंचता है।
शुरु में इसके पौधों को 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। इसके बाद जब पौधों में फूल लगने लगते हैं तब इन्हें शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। जब इसके फल पकाने लगते हैं। तब इन्हें 30 से 35 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। तापमान से अधिक होने पर फलों की गुणवत्ता में कमी तथा फलों में टूट जाने का खतरा बढ़ जाता है।
काजू का पेड़ कैसे लगाया जाता है?
काजू का पेड़ कैसे लगाया जाए इसके लिए हमने यहां कुछ स्टेप बताया है जिसका जानकारी लेकर आप लगा सकते हैं।
दोस्तों काजू में फार्मिंग किया जाता है काजू के पेड़ जंगलों में नेचुरल या फिर क्या फॉर्म में इसकी फार्मिंग किया जाता है।
अप्रैल के महीने में काजू का फल पक कर तैयार हो जाते हैं और वहां से शुरू होता है अगला प्रक्रिया जिसे कहा जाता है Sortex यानि काजू की जो फल होते हैं।
उसे फल के नीचे किड़नी जैसे फल पाए जाते हैं। उसे किडनी फल को निकलना बेहद जरूरी है क्योंकि वह भी जहर होता है।
इसके बाद काजू के फल के अंदर जो नमी होती है उसे निकालने के लिए उसे धूप में 3 दिनों तक सिखाया जाता है ताकि सारी जहर निकल जाए।
उसके बाद काजू को आग में गर्म किया जाता है ताकि काजू के युग पर जो कड़क छिलका होता है वह पिघलाकर निकल जाता है।
और जो चिपचिपा खतरनाक जहरीला होता है वह भी निकल जाता है।
उसके बाद धीरे-धीरे काजू के ऊपर छिलका निकाल दिया जाता है उसके बाद काजू के ऊपर जो कलर चढ़ाया जाता है ताकि काजू की कीमत बढ़ सके।
उसके बाद काजू को भेज दिया जाता है उसे मशीन में जो काजू के बच्चे कचरे को साफ करता है।
उसके बाद काजू खाने लायक हो जाता है फिर दुकान में इसकी सप्लाई किया जाता है।
काजू की उन्नत किस्म
काजू में भी कई तरह के किसमें पाई जाती है। इसमें इनकी अच्छी गुणवत्ता तथा पैदावार के हिसाब से इन्हें लगाया जाता है।
BPP 1 किस्म के पौधे
इस किस्म की खेती को अधिकतर पूर्वी समुद्रीय तटीय इलाकों में किया जाता है। इस प्रकार का एक पौधा प्रतिवर्ष 15 किलो तक के कार्यों का प्रदान करता है। इसमें लगभग 30% तक छिलका पाया जाता है इसका एक बी लगभग 5 ग्राम का होता है काजू का पौधा एक बार लग जाने के बाद 25 वर्ष तक पैदावार देता रहता है।
BPP 2 किस्म के पौधे
पौधे की यह किस्म BPP 1 पौधों की तरह ही समुद्रीय तटीय इलाकों में की जाती है। किंतु इसके एक पौधे में एक वर्ष में लगभग 20 किलो तक के काजू प्राप्त होते हैं। इसमें लगभग 20% तक छिलका पाया जाता है इसके अतिरिक्त भी इसमें BPP की 3,4,5,6 किसमें पाई जाती है जिन्हें सामान्य तापमान और वातावरण में उगाया जाता है किंतु सभी किस्म की पैदावार अलग-अलग होती है।
वेगुरला 1 - 8
इस किस्म की पश्चिमी समुद्रीय तटीय जगह पर उगाया जाता है। काजू की इस किस्म का पौधा तकरीबन 28 से 30 साल तक पैदावार देता है। इसके एक पौधे से प्रतिवर्ष 23 से 25 किलो तक का काजू प्राप्त होते हैं इसमें बीजों के 30 से 35% तक के छिलके प्राप्त होते हैं।
गोवा - 1
काजू की यह किस्म पश्चिमी समुदाय तटीय इलाकों में उगाई जाती है। यह एक बार में 25 किलो तक के काजू का पैदावार देता है इसमें 25 से 30% तक छिलके प्राप्त होते हैं।
V.R.l. 1 - 3
काजू की इस किस्म को तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बनाया गया है। इसमें लगभग 25 किलो काजू एक पौधे से प्राप्त हो जाते हैं। पौधे की इस किस्म को तमिलनाडु के अलावा और भी कई जगहों पर उगाया जा सकता है।
इसके अलावा भी कई तरह के किसमें पाई जाती है। जो कि इस प्रकार है।
वी आर आई - 1,2
उलाल - 1,2
अंकायम 1
मडक्कतरा 1,2
धना
प्रियंका
कनका
अनकक्कायम 1
बी ल ए 39 - 4
क 22 - 1
एन डी आर 2 - 1 आदि उगाई जा सकता है।
खेत की जुताई और पौधों को तैयार करने का तरीका
काजू की खेती करने से पहले खेत को अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लेनी चाहिए। जिससे पुरानी फसल के सभी अवशेषों को निकाल दिया जाए। इसके बाद इसकी दो बार गहरी और तिरछी जुताई कर देनी चाहिए। इसके बाद खेत को मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत में रोटावेटर को चलकर समतल बना लें। इसके बाद समान दूरी रखते हुए पंक्तियों में गधे बना लें। एक हेक्टेयर के खेत में प्रत्येक गधों के बीच 4 मीटर की दूरी रखते हुए लगभग 500 गधों को तैयार किया जा सकता है।
इसके बाद इन गधों में गोबर की खाद को उचित मात्रा में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला देना है। इसके साथ ही रासायनिक खाद को भी गड्ढों में उचित मात्रा में डालकर मिट्टी में मिला दें। यह सारी प्रक्रिया हो जाने के बाद सभी गधों की अच्छी से सिंचाई कर देनी चाहिए और इन गधों को ढक देना चाहिए।
काजू के पौधों को तैयार करने के लिए इसके बीजों को भी सीधे खेत में लगाया जा सकता है इसके पौधे 6 से 7 साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं, इस वजह से इसके पौधों को कलम लगाकर तैयार कर लेना चाहिए। यदि आप चाहे तो इसके पौधे को नर्सरी से खरीद कर भी लगा सकते हैं। इससे आपका समय की बचत हो सकती है आपको सरकारी रजिस्टर नर्सरी से पौधों की खरीदना चाहिए।
ग्राफिक की तरीके का इस्तेमाल करके इसके पौधों को घर पर भी तैयार किया जा सकता है। इसके लिए एक काजू के बीजों को तैयार लगाने के बाद 2 साल तक इंतजार करना पड़ता है। ग्राफिक में काम आने वाला पौधा लगभग 2 साल पुराना होना चाहिए। इसके बाद काजू के पौधों को जड़ से थोड़ा ऊपर से काटकर उसे जंगली पौधों से लगा देना चाहिए, पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए उन्हें खेत में लगा देना चाहिए कलम द्वारा तैयार किया गया पौधा 3 वर्ष बाद फल देना शुरू कर देता है।
पौधों की रोपाई की तरीका तथा सही समय
काजू के पौधों को खेत में लगाने से पहले गद्दा को 1 महीने पहले ही तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद गड्ढों में पौधा को लगाने में मौजूद खरपतवार को निराई गुड़ाई कर लेना चाहिए। इसके बाद इन गड्ढों में एक छोटा सा गड्ढा बनाकर उसमें पौधों को लगा देना चाहिए फिर उसके बाद उसके चारों तरफ अच्छे से ढक देना चाहिए।
काजू के पौधों की रोपाई बारिश के मौसम में करने से इन्हें प्रारंभिक में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इससे पौधों की वृद्धि अच्छे से होती है तथा पौधे बड़े भी जल्दी हो जाते हैं और उसे समय आपको पानी देने में भी दिक्कत नहीं होती है।
पौधों में उर्वरक की मात्रा और सिंचाई
काजू के पौधों को वृद्धि करने के लिए अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इस वजह से इसके पौधे को उचित मात्रा में उर्वरक देना चाहिए। पौधों को लगाने से पहले गधों को तैयार कर लेना चाहिए। गड्ढों को तैयार करते वक्त गड्ढों में गोबर की खाद डालकर भर दें। इसके साथ ही आधा किलो N.P.K की मात्रा को भी मिट्टी में डालकर मिला दें। यह सारी प्रक्रिया पौधों को लगाने की 1 महीने पहले ही की जाती है इससे मिट्टी को अच्छे से पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं।
काजू के पौधों को बारिश के मौसम में लगाने से इन्हें पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। बारिश का मौसम जाने के बाद सर्दियां के मौसम में इन्हें 10 से 12 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए। वही गर्मियां के मौसम में 3 से 4 दिन में पौधों की सिंचाई करते रहना चाहिए। जब पौधों में फूल निकलने लगे तब पानी देने की मात्रा को कम कर दें जिससे फूल झड़ने का खतरा न हो।
काजू के खेत में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार पर नियंत्रण के लिए काजू के खेतों में निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। पौधों को खेत में लगाने से डेढ़ से 2 महीने बाद इसकी पहली गुड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद समय-समय पर खेत में जब खरपतवार दिखाई दे तो उसकी बुराई कर दें निराई गुड़ाई से खरपतवार निधांतरण कर पौधों की अच्छी से वृद्धि की जा सकती है।
काजू की खेती में अतिरिक्त कमाई
काजू के फसल को तैयार होने में 3 से 4 वर्ष का समय लग जाता है, जिससे अधिक किसान भाई चाहे तो इस दौरान काजू के पौधों को बीच में जो कर मीटर की दूरी पर लगे होते हैं उसके बीच में दलहन और सब्जी की फसल कर अतिरिक्त कमाई भी कर सकते हैं।
काजू के पौधे में लगने वाले रोग
काजू के पौधे में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं जिससे बचाव करने के लिए फसल को काफी नुकसान भी हो सकता है। जिससे पैदावार में भी प्रभावित हो सकती है। इससे लगने वाले रोग और बचाव की जानकारी इस प्रकार है।
स्टेम बोरर रोग
इस रोग के लग जाने से पौधों और फलों को ही काफी नुकसान होता है। स्टेम बोरर का लारवा पौधे के तने के अंदर से खाकर उसे खोखला कर नष्ट कर देता है। इस रोग की रोकथाम के लिए जब पौधों के ताने पर छिद्र दिखाई दे तो उसमें चिकनी मिट्टी का लेप या केरोसिन में हुई कौन भिगोकर छिद्रों पर लगा देना चाहिए। इससे इसमें लगने वाला कीड़ा अंदर ही मर जाता है।
टी मास्किटो बग कीट रोग
किट्टू का यार रोग पौधों के लिए एक बड़ी समस्या है। टी मास्किटो बग कीट रोग पौधों को नर्म भाग पर हमला कर नई शाखा पत्तियां कपाल को रस चूस कर उन्हें नष्ट कर देता है। जिससे पौधा वृद्धि नहीं कर पाता है। इस तरह के रोग की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास का उचित मात्रा में पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
लीफ माइनर रोग
पौधों पर लगने वाला यार रोग पत्तियों का रस चूस कर उन्हें हानि पहुंचती है इस रोग में पत्तियों पर सफेद रंग की धारियां बन जाती है तथा कुछ समय पश्चात पत्तियां पीली पढ़कर खराब हो जाती है। पौधों पर डॉरिवो मिश्रण का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
सूट कैटरपिलर कीट रोग
इस रोग के लग जाने से पत्तियां पर काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। या धीरे-धीरे आकार में बड़े होते जाते हैं जिससे पत्तियां सूखकर नष्ट हो जाती है। सूट कैटरपिलर का लारवा सीधे पौधा की पत्तियां पर हमला करता है जिससे पौधा विधि करना बंद कर देता है। इस तरह से के रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव किया जाता है।
रूट बोरर कीट रोग
यह रोग पौधों के लिए ज्यादा हानिकारक होता है इस रोग के कट पौधों की जड़ों को खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। जिससे पौधा मुरझाने लगता है तथा कुछ समय पश्चात सूखकर नष्ट हो जाता है इस रोग की रोकथाम के लिए मोटराइजेशन का छिड़काव पौधों पर किया जाता है।
काजू का उत्पादन
काजू के पौधों में रोपाई के 3 साल बाद फूल लगा प्रारंभ हो जाता है। तथा फूलों के दो महीने बाद फल पक कर तैयार हो जाते हैं। काजू को कैसियो एप्पल भी कहा जाता है। काजू दिखने में किडनी के आकार का होता है। फलों के पकने के बाद गिरी के ऊपर लाल पीले रंग के फूल दिखाई देने लगते हैं। काजू की गिरी जहरीली होती है। तकनीकी प्रक्रिया कर इन्हें खाने योग बनाया जाता है। सबसे पहले इनके फलों को छांटकर धूप में अच्छे से सुख लिया जाता है। इसके बाद इन्हें खाने के लिए प्रोसेसिंग कर तैयार किया जाता है।
काजू की फसल में पैदावार की बात करें तो इसके पौधों के एक बार लग जाने के बाद कई वर्षों तक पैदावार देते हैं। इसके पौधों को लगाते समय ज्यादा खर्च आता है एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 500 पौधों को लगाया जा सकता है। एक पौधे में 20 किलो काजू के हिसाब से एक हेक्टेयर में लगभग 10 तन की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। काजू की प्रोसेसिंग में अधिक खर्च आता है। किंतु काजू की बजरी भाभी काफी अच्छा होता है। प्रोसेसिंग कर खाने योग्य काजू का बाजरी भाव ₹700 से लेकर गुणवत्ता के आधार पर इससे भी अधिक होता है। थोक में भी इसे ₹500 प्रति किलो तक भेज सकते हैं। जिससे किसान इसकी एक फसल में काफी अच्छी कमाई कर अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
काजू खाने के फायदे?
दोस्तों काजू में बहुत से तत्व पाए जाते हैं जो बहुत ही कमल तत्व होता है।
अगर आपके शरीर में एनर्जी नहीं है तो आप काजू खाने से आपके शरीर में तुरंत एनर्जी मिलेगा।
अगर आपको बहुत ज्यादा भूख लग रहा है तो आप काजू खाने से आपकी भूख कम हो जाएंगे।
इसके साथ ही अगर आप बीपी के बीमारी से परेशान है तो आप काजू खाकर बीपी हाई कर सकते हैं
काजू का सेवन करके हर सब्जियों में किया जाता है काजू बेहद ही लाभदायक है।
अगर आप गर्भवती हैं तो भी आप काजू का सेवन कर सकते हैं।
लेकिन काजू को लिमिट भर खाना चाहिए ज्यादा खाने से नुकसान भी होता है।
निष्कर्ष
तो दोस्तों उम्मीद करते हैं कि अब आपको समझ में आ गया होगा कि काजू की खेती कैसे करें। या काजू की खेती कैसे होती है काजू खाने के फायदे व नुकसान। हमने यहां पर काजू के बारे में विस्तार से जानकारी दिए हैं अगर फिर भी हमारे द्वारा बताए गए जानकारी से आपको कोई समस्या है तो आप हमें कमेंट में जरूर बताएं साथ ही इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वह भी काजू की फसल कर सके।
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